नेमरा गांव में दिशोम गुरु शिबू सोरेन जी के निधन के बाद तुरंत बाद ही उनकी याद में जो बन रही सड़कों को लेकर भावनाएं व्यक्त की गई हैं, वह झारखंड के विकास की के बहुत ही कड़वी और निन्दिये सच्चाई को दर्शाती हैं। यह एक ऐसी घटना का सबूत है, कि जो दिखाती है कि कैसे हमारे नेताओं के जीवन से लेकर और मृत्यु तक दोनों ही हमारे समाज में बदलाव लाने का जरिया बनता जा रहा हैं। यह बेहद दुखद ही बात है कि नेमरा के लोग यह सोच रहे हैं कि अगर शिबू सोरेन जी जब तक जीवित होते, तब तक शायद यह सड़क कभी नहीं बन पाती । यह भावना सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं दर्शाता है , बल्कि उन लाखों लोगों की प्रेरणा है, जो सालों से बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्ष करते आ रहे हैं।
यह सच बात है कि जब कोई बड़ा नेता हमारे बीच से चला जाता है, तो उसके सम्मान में ब कुछ बड़ा किया जाता है। सड़कों का निर्माण, स्मारकों का निर्माण, और विभिन्न योजनाओं का नामकरण—यह सब स्वाभाविक है। लेकिन क्या यह सही है कि यह सब कुछ उनके जाने के बाद ही हो सकता हैं? क्या उनके जीवित रहते हुए, उनके सम्मान में, और उनके लोगों के लिए यह सब नहीं किया जा सकता था? नेमरा में बिना टेंडर और बिना ही किसी अनुशंसा के सड़क का निर्माण का कार्य शुरू हो गया , यह दर्शाता है कि अगर सरकार चाहे, तो कोई भी कार्य को बहुत तेजी से हो सकता है।

झारखंड के विकास का सच
झारखंड, जिसे हम “सोना झारखंड” कहते हैं, उसकी एक और कड़वी सच्चाई यह भी है। यहां विकास की गति सीमा धीमी है, और इसका सबसे बड़ा कारण है यह भी है कि राजनीतिक इच्छाशक्ति की अभी भी कही न कहीं कमी है। नेमरा में जो हुआ, वह दिखाता है कि अगर सरकार की नीयत साफ और सरल हो, तो नियमों को ताक पर रखकर भी कोई भी काम को कराया जा सकता है। लेकिन यह क्यों सिर्फ एक विशेष परिस्थिति में ही हो सकता है? क्यों पूरे झारखंड में ऐसी ही तत्परता नहीं दिखाई जाती?
झारखंड के लाखों गांव आज भी कच्ची सड़कों, बिजली और पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित रह गए हैं। ऐसे में जब नेमरा में भोज कर्म के लिए अतिथियों के आने के कारण बना दस दिन के अंदर ही सड़क का कार्य शुरू कर दिया गया , तो यह सवाल उठना लाजिमी ही बनता है कि क्या हमारे नेताओं के जीवन से ज्यादा उनकी मृत्यु ही महत्वपूर्ण होती जा रही है? क्या यह सच है कि किसी भी बड़े काम के लिए किसी नेता के जाने का इंतजार करना पड़ता है ?
नेमरा में सड़क का बनना अच्छा है, लेकिन यह जिस तरह से यह हुआ, वह कई सवाल को भी खड़े करता है। गांव में जहां सड़क बन रही है, वहीं दूसरी तरफ गोतिया के घर के अंदर पानी से भरे हुए हैं। यह विसंगति विकास के मॉडल पर सवाल को उठाती है। क्या यह सही है कि एक तरफ तो सड़क बन जाए, और दूसरी तरफ एक ही गांव के लोग पानी में डूब रहे हों? यह दिखाता है कि विकास का मतलब सिर्फ सड़क ही बना देना नहीं होता है, बल्कि यह देखना भी होता हैं कि यह विकास सभी तक पहुंच रहा है कि नहीं ।