अदालत की अवमानना से खतरे में सारंडा वन: झारखंड के मुख्य सचिव को सुप्रीम कोर्ट की अंतिम चेतावनी, ‘वन्यजीव अभयारण्य घोषित नहीं हुआ तो सीधे जेल’ 2025

झारखंड का सारंडा वन, जिसे दुनिया के सबसे पुराने और घने साल के पेड़ों का घर माना जाता है, आजकल एक बड़े संकट का सामना कर रहा है। यह संकट न केवल पर्यावरण से जुड़ा है, बल्कि सीधे-सीधे न्यायपालिका के आदेशों की अनदेखी करने से भी जुड़ा है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने झारखंड सरकार को कड़ी फटकार लगाई है और चेतावनी दी है कि अगर 8 अक्टूबर तक सारंडा को सेंचुरी घोषित करने की अधिसूचना जारी नहीं होती है, तो राज्य के मुख्य सचिव को सीधे जेल जाना पड़ेगा।

न्यायालय का कड़ा रुख

यह मामला तब शुरू हुआ जब सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड सरकार से 576 वर्ग किलोमीटर के सारंडा वन क्षेत्र और अतिरिक्त 136 किलोमीटर के क्षेत्र को वन्यजीव अभयारण्य और संरक्षण रिजर्व के रूप में अधिसूचित करने को कहा था। सरकार ने इस पर सहमति जताई थी और आश्वासन दिया था कि वह दो महीने के भीतर ऐसा कर देगी। लेकिन, झारखंड सरकार ने इस आदेश का पालन नहीं किया, जिससे सुप्रीम कोर्ट ने इसे अदालत की घोर अवमानना माना है।

मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि ऐसा लगता है कि झारखंड सरकार न केवल टालमटोल कर रही है, बल्कि अदालत के साथ छल भी कर रही है। पीठ ने साफ तौर पर कहा कि अगर 8 अक्टूबर तक अधिसूचना जारी नहीं हुई तो मुख्य सचिव जेल जाएंगे।

क्या है सारंडा वन का महत्व?

सारंडा वन सिर्फ एक जंगल नहीं है, यह जैव विविधता का एक अनमोल खजाना है। इसे दुनिया का एकमात्र प्राचीन साल वृक्षों का वन माना जाता है। यह क्षेत्र कई वन्यजीवों, जैसे हाथियों, तेंदुओं और विभिन्न प्रकार के पक्षियों का घर है। यह जंगल पश्चिमी सिंहभूम जिले में स्थित है और इसे “सात सौ पहाड़ियों की भूमि” के रूप में भी जाना जाता है। इस क्षेत्र में लोहे के अयस्क का भी बड़ा भंडार है, जिसके कारण यह खनन कंपनियों के निशाने पर है।

सरकार की मंशा पर सवाल

कोर्ट ने यह भी पाया कि सरकार ने अपने वादे से मुकरते हुए, अभयारण्य घोषित करने की प्रक्रिया को और लंबा खींचने के लिए एक नई समिति का गठन किया। यह कदम दिखाता है कि राज्य सरकार की प्राथमिकता पर्यावरण संरक्षण नहीं, बल्कि शायद औद्योगिक और खनन हित हैं।

सुप्रीम कोर्ट का यह सख्त आदेश यह संदेश देता है कि न्यायालय के फैसलों की अनदेखी बर्दाश्त नहीं की जाएगी। यह मामला सिर्फ एक वन क्षेत्र को बचाने का नहीं है, बल्कि यह न्यायपालिका के अधिकार और सरकारी जवाबदेही का भी सवाल है। अब सभी की निगाहें 8 अक्टूबर की तारीख पर टिकी हैं, जब यह तय होगा कि सारंडा का भविष्य क्या होगा।

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